Philosophy · poetry

उम्मीद

कभी छावॅ है, तो कभी धूप है,

अभी रात है, पर सवेरे का इतंजार है,

सूरज की पहली किरन से आश है।

सासॅ है, तो जान है।

जिदंगी है,तो उम्मीद है।

चल, अचल का उत्साह है,

बेताब धारा की उल्लास है,

पर सागर जैसा ठहराव है।

कभी छावॅ है, तो कभी धूप है,

रात है, तो सवेरा है।

सासॅ है, तो जान है।

जिदंगी है, तो उम्मीद है।

My first try with hindi poetry, if you enjoyed it please like and subscribe 😊

21 thoughts on “उम्मीद

  1. “न रहने दो कलम को खामोश”
    …………..
    बहुत सारी अच्छी किताबो को पढ़ो
    output तभी आता है जब बहुत सारा अच्छा इनपुट मिलता है लेखक को.

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  2. उम्मीद!! उम्मीद से भी ज्यादा उम्दा!! शानदार लाजबाब!! लिखते रहिये।

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